बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद कौन करते हैं धाम में पूजा, स्त्री वेश में क्यों प्रवेश करते हैं रावल
बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) को भगवान विष्णु का दूसरा निवास स्थान कहा जाता है। यहां सतयुग तक भगवान नारायण के साक्षात दर्शन सभी भक्तों को हुआ करते थे। 6 महीने ग्रीष्मकाल में मनुष्यऔर 6 महीने शीतकाल में देवता नारायण की पूजा करते हैं। देवताओं के प्रतिनिधि के तौर पर देवर्षि नारद द्वारा यह कार्य संपन्न किया जाता है और वही अखंड ज्योति को जलाए रखते हैं।
कपाट बंद होने के दिन बद्रीनाथ मंदिर को हज़ारों फूलों से सजाया जाता है। मुख्य पुजारी रावल पूरे गर्भग्रह को भी फूलों से सजाते हैं। पूजा अर्चना के बाद गर्भग्रह में मौजूद उद्धव और कुबेर की मूर्तियों को बाहर लाया जाता है। इसके बाद रावल स्त्री वेश में लक्ष्मी की सखी बनकर लक्ष्मी की मूर्ति को बद्रीनाथ के सानिध्य में रख देते हैं। मान्यता है कि छह महीने तक लक्ष्मी यहीं रहती हैं।
भगवान नारायण के चल विग्रह उद्धव जी को गर्भगृह से बाहर लाने के पीछे का कारण यह है कि उद्धव भगवान बद्री विशाल के बड़े भाई होने के नाते मां लक्ष्मी के जेठ हैं। अगले 6 माह तक नारायण के बामांग में माता लक्ष्मी विराजमान रहेंगी। भगवान बद्री विशाल के कपाट बंद होने से पहले मंदिर के मुख्य पुजारी रावल स्त्री वेश धारण कर मां लक्ष्मी को नारायण के बामांग में विराजमान करेंगे और भगवान बद्री विशाल के चल विग्रह उद्धव 6 माह के लिए पांडुकेश्वर स्थित योग ध्यान बद्री मंदिर में विराजमान रहेंगे।
घी में डुबोए कंबल में लिपटी रहती है :
मूर्ति कपाट बंद होने के दिन बद्रीनाथ की मूर्ति को घी में डुबोए गए ऊनी कंबल से लपेटा जाता है। ये ऊनी कंबल भारत के आखिरी गांव माणा की महिलाओं द्वारा बुनकर तैयार किया जाता है। इसे घृत कम्बल कहते हैं। बद्रीनाथ के रावल इस पर घी लगाते हैं और फिर इसे मूर्ति को ओढ़ा देते हैं। इसके बाद हजारों श्रद्धालुओं द्वारा की जाने वाली जय-जयकार के बीच बद्रीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
उल्टे पैर ही रावल मंदिर से निकलते हैं :
मान्यता है कि माता लक्ष्मी को भगवान बद्री विशाल के गर्भगृह में विराजमान करने के बाद मंदिर के मुख्य पुजारी रावल भावुक हो जाते हैं, इसलिए उन्हें मंदिर से बाहर तक उल्टे पैर ही लाया जाता है। मंदिर से बाहर आने के बाद भी रावल काफी समय तक गुमसुम रहते हैं। कपाट बंद होने के दौरान भगवान बद्री विशाल को माणा गांव की कुंवारी कन्याओं द्वारा निर्मित घृत कंबल ओढ़ाकर कपाट बंद किए जाते हैं। यह कंबल गाय के घी और कच्चे सूत से निर्मित होता है।
छह माह बाद भी जलता हुआ मिलता है दीपक :
कपाट बंद होने के दौरान जिस अखंड दीपक को मंदिर के गर्भगृह में जलता हुआ छोड़ जाता है, वह दीपक 6 माह बाद कपाट खुलने के अवसर पर जलता हुआ मिलता है। मान्यता है कि 6 माह भगवान बद्री विशाल की पूजा देव ऋषि नारद करते हैं, क्योंकि भगवान बद्री विशाल की पूजा का अधिकार 6 माह नर और छह माह नारायण को है।
नोट : इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं। Indian News Room किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।