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तमिलनाडु जाएं तो जरूर देखें सारंगपानी मंदिर, जानिए इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

अगर आप आध्यात्मिक प्रवृत्ति के इंसान हैं, तो आपको दक्षिण भारत की यात्रा जरूर करनी चाहिए। यूं तो आपको भारत के कोने-कोने में कई मंदिर मिलेंगे, लेकिन दक्षिण भारत के मंदिरों की संरचना बेहद ही विशेष होती है। ऐसा ही एक विशिष्ट मंदिर तमिलनाडु के कुंभकोणम में स्थित है, जिसे सारंगपानी मंदिर के नाम से जाना जाता है।

ऐसा मान्यता है कि सारंगपानी मंदिर का निर्माण 2000 साल से भी पहले हुआ था। दरअसल, 7वीं शताब्दी ईस्वी के शुरुआती ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। यह भगवान विष्णु को समर्पित एक मंदिर है और इसे भगवान विष्णु के तीन प्रमुख दक्षिण भारतीय मंदिरों में से एक के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर इसलिए भी विशेष है, क्योंकि इसे 108 दिव्य देसम में से एक के रूप में भी माना जाता है। यही कारण है कि तमिलनाडु आने वाला हर यात्री सारंगपानी मंदिर का दर्शन जरूर करता है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको सारंगपानी मंदिर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं, जिन्हें जानने के बाद आप भी इस मंदिर का दौरा अवश्य करना चाहेंगे।

सारंगपानी नाम का अर्थ :

इस मंदिर में त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस मंदिर का नाम सारंगपानी होने के पीछे की एक खास वजह है। संस्कृत शब्द सारंग का अर्थ है भगवान विष्णु का धनुष और पाणि का अर्थ है हाथ। सारंगपाणि नाम का अर्थ है “वह जिसके हाथ में धनुष है। यह मंदिर पंच क्षेत्रम का भी एक हिस्सा है, जिसका अर्थ है 5 मंदिर। ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी का जन्म सारंगपानी मंदिर में महर्षि भृगु की पुत्री भार्गवी के रूप में हुआ था।

मंदिर का आर्किटेक्चर :

दक्षिण भारत के मंदिरों का आर्किटेक्चर बेहद ही विशेष होता है। सारंगपानी मंदिर के आर्किटेक्चर की बात की जाए तो यहां पर आपको द्रविड़ वास्तुकला की झलक देखने को मिलती है। मंदिर में जटिल नक्काशी, भव्य गोपुरम और खूबसूरती से गढ़े गए स्तंभ हैं। मंदिर का राजगोपुरम अर्थात् मुख्य टॉवर लगभग 150 फीट ऊंचा है। यह दक्षिण भारतीय मंदिरों की भव्य वास्तुकला और शिल्प कौशल को दर्शाता है।

ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है मंदिर :

इस मंदिर ना केवल आर्किटेक्चर खास है, बल्कि यह आध्यात्मिक और ऐतिहासिक रूप से भी उतना ही विशेष है। ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर लगभग 2000 वर्ष पुराना है। 9वीं शताब्दी में चोल वंश और बाद में विजयनगर साम्राज्य, मदुरै नायक और मध्ययुगीन चोलों द्वारा समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण किया गया था। मंदिर के शिलालेख और वास्तुकला इन ऐतिहासिक परतों को दर्शाते हैं। वैष्णव ग्रंथ में 108 विष्णु मंदिरों को दिव्यदेशम के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें यह मंदिर भी शामिल है।

बेहद विशेष है मंदिर का तालाब :

मंदिर में पोतरामराय कुलम नामक एक महत्वपूर्ण तालाब है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसे ऋषि भृगु ने बनाया था। तालाब और उसके आस-पास के क्षेत्र को पवित्र माना जाता है और यह मंदिर के विभिन्न अनुष्ठानों और त्योहारों का हिस्सा है।

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