Tulsi Vivah 2023 : घर पर ऐसे करें शालिग्राम और तुलसी का विवाह, मिलेगा सौभाग्य, जानें महत्व, विधि
हिंदू शास्त्रों और धर्म ग्रंथों में भगवान शालिग्राम जी को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। कहते हैं कि जिस घर में भी भगवान शालिग्राम वास करते हैं, उस घर में कभी भी नकारत्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीय होता और परिवार की रक्षा होती है लेकिन भगवान सालिग्राम की पूजा नियमित रूप से विधि पूर्वक की जाती है। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष एकादशी और द्वादशी तिथि को शालिग्राम जी की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन भगवान शालिग्राम का विवाह माता तुलसी के साथ किया जाता है। मान्यता है कि इस विवाह से व्यक्ति को कन्यादान के सामान पुण्य प्राप्त होता है।
तुलसी विवाह के दिन घर में यज्ञ और सत्यनारायण व्रत करना विशेष लाभकारी होता है। तुलसी विवाह घर में या मंदिर में करें. इस दिन शाम तक या तुलसी जी का विवाह होने तक व्रत रखा जाता है। सबसे पहले तुलसी के पेड़ और भगवान विष्णु की मूर्ति को स्नान कराकर शुद्ध किया जाता है, फिर तुलसी के पेड़ को लाल साड़ी, आभूषण से दुल्हन की तरह सजाया जाता है। विष्णुजी की मूर्ति को धोती पहनाई जाती है। विष्णु और तुलसी दो धागों से बंधा जाता है। विवाह में तुलसी और भगवान विष्णु पर सिन्दूर और चावल की वर्षा की जाती है, फिर सभी भक्तों के बीच प्रसाद वितरित किया जाता है।
तुलसी विवाह की पौराणिक मान्यता और कथा :
जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए और अपनी रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का सतीत्व यानी पतिव्रत धर्म भंग करने का निश्चय किया। क्यों की ऐसा किए बिना शंखचूड का वध करना संभव नहीं था इसलिए भगवान विष्णु ने छलपूर्वक वृंदा का सतीत्व नष्ट किया और शंखचूड का वध किया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो वह क्रोधित हो उठी और उसने भगवान विष्णु से कहा की तुम निर्दयी हो तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है और मेरे पति का वध किया है इस लिये मैं श्राप देती हूं की तुम पत्थर हो जाओगे। इसी श्राप से श्रापित भगवान विष्णु काला पत्थर होकर शालिग्राम बन गए। भगवान विष्णु ने तुलसी को कहा कि तुम पिछले जन्म से ही प्रियशी थीं इसलिए भले ही तुम मुझे श्रापित या अश्विकार करो किंतु मैं तुम्हे स्वीकारता हूं और जो भी मनुष्य तुम्हारा विवाह मेरे साथ करेगा तुलसी और सालिग्राम रूप में उसे सांसारिक अलौकिक शुखों की प्राप्ति होगी और रोग, व्याधि मुक्त होग और परम धाम को प्राप्त होगा और तुलसी वहीं सती हो कर तुलसी के वृक्ष के रुप में जन्मी।
तब से ही कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाने लगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी दल के बिना शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है।