क्या भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र को रोकने की क्षमता किसी में थी, यहाँ जानिए विस्तार से
वैसे तो ये हर किसी को पता होगा कि सुदर्शन चक्र भगवान् विष्णु का शस्त्र है, जिसे उन्होंने खुद और उनके कृष्ण अवतार ने धारण किया हुआ है। मगर जो लोग इस चक्र के बारे में नहीं जानते उन्हें हम बताना चाहते है कि भगवान् विष्णु ने किंवदंती के इस चक्र को गढ़वाल के श्रीनगर में स्थित कमलेश्वर शिवालय में तपस्या करके प्राप्त किया था। इसके इलावा इस चक्र की खास बात ये है कि यह एकमात्र ऐसा शस्त्र है, जिसे चलाने के बाद ये अपना लक्ष्य पूरा करके वापिस अपनी जगह पर पहुँच जाता है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि भगवान् श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र को रोकने की क्षमता शायद ही किसी में थी। तो चलिए आपको इस चक्र के बारे में विस्तार से बताते है।
भगवान् श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र को रोका था अर्जुन ने :
गौरतलब है कि भगवान् विष्णु को यह चक्र हरिश्वरलिंग यानि शंकर जी से प्राप्त हुआ था। बता दे कि भगवान् श्री कृष्ण असल में विष्णु जी के आठवें अवतार थे और ये हिन्दू धर्म के ईश्वर माने जाते है। यहाँ तक कि पूरी दुनिया कृष्ण जी को अनगिनत नामों से जानती है और कृष्ण जी निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ और दैवी सम्पदाओं से परिपूर्ण महान पुरुष थे। जिनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था और उन्हें इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। बहरहाल श्री कृष्ण जी के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण जी के चरित्र में बारे में विस्तार से बताया गया है।
वही अगर हम कृष्ण जी के जन्म की बात करे तो वे देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे और मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था, जब कि गोकुल में उनका पालन पोषण हुआ था। जी हां यशोदा माँ और नन्द बाबा उनके पालक माता पिता थे। बता दे कि कृष्ण जी ने बाल्यावस्था में ही बड़े बड़े काम करने शुरू कर दिए थे, जो कोई साधारण मनुष्य नहीं कर सकता था। यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि मथुरा में मामा कंस का वध करने के बाद सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहां अपना राज्य बसाया। इसके साथ ही पांडवों की मदद की और उन्हें कई कठिन परिस्थितियों से भी बचाया। बहरहाल महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई थी और भवद्गीता का ज्ञान दिया, जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है।
आखिर क्यों अर्जुन की बात मान कर कृष्ण जी ने सुदर्शन चक्र ले लिया था वापिस :
जी हां करीब एक सौ चौबीस वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी थी। बता दे कि कृष्ण जी के अवतार की समाप्ति के बाद परीक्षित के राज्य का कालखंड आता है। यानि राजा परीक्षित जो अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे, उनके समय से ही कलियुग का आरम्भ माना जाता है। वैसे महाभारत के अनुसार ऐसा माना जाता है कि कृष्ण जी के सुदर्शन चक्र को उनके सिवाय कोई नहीं रोक सकता था। हालांकि महाभारत में एक प्रसंग ऐसा भी आता है, जब अर्जुन के अभय देने पर श्री कृष्ण जी ने सुदर्शन चक्र को वापिस ले लिया था।
दरअसल ये तब की बात है, जब अर्जुन और श्री कृष्ण खांडव वन को जलाने में अग्नि देव की मदद कर रहे थे, तब मयासुर नामक दैत्य उसी वन में निवास करता था। ऐसे में जब वन में आग लगी, तब मयासुर खुद को बचाने के लिए वहां से भागने की कोशिश करने लगा और तभी कृष्ण जी की नजर उस पर पड़ गयी। जिसके बाद कृष्ण जी ने उसका वध करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र निकाल लिया, लेकिन तभी मयासुर खुद को बचाने के लिए अर्जुन की शरण में चला गया।
ऐसे में अर्जुन को उस पर दया आ गई और अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से पूछे बिना ही उसे जीवनदान दे दिया। जिसके बाद कृष्ण जी ने अपने सुदर्शन चक्र को वापिस बुला लिया। बता दे कि महाभारत के अनुसार ये प्रसंग कुछ इस प्रकार है। हालांकि यहाँ भगवान् श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र को वापिस जरूर जाना पड़ा, लेकिन वो सिर्फ इसलिए क्यूकि कृष्ण जी अर्जुन से इतना प्रेम करते थे कि वो उसके वचन को टाल नहीं सके। दोस्तों आपको ये जानकारी कैसी लगी, इस बारे में हमें अपनी राय जरूर दीजियेगा।