उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का जीवन था बड़ा ही संघर्षपूर्ण, ऐसा था शिक्षक से सीएम बनने तक का सफर
बता दे कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। जी हां बीते शनिवार कल्याण सिंह का निधन हो चुका है और उनके निधन से कई नेता बेहद दुखी है। बहरहाल कल्याण सिंह का जीवन काफी संघर्षपूर्ण था और एक शिक्षक से सीएम बनने का उनका सफर भी आसान नहीं था। अगर आप नहीं जानते तो हम आपको बता दे कि कल्याण सिंह की गिनती राम मंदिर आंदोलन के बड़े नेताओं में होती थी और उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव मढ़ौली से निकल कर वह दो बार मुख्यमंत्री बने थे। जी हां वह भाजपा के इकलौते ऐसे नेता थे जिन्हें यूपी के हर जिले कार्यकर्ता अच्छी तरह से जानते है। यानि अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो कल्याण सिंह जमीन से जुड़े हुए नेता थे।
कल्याण सिंह का जीवन था ऐसा :
अब अगर हम कल्याण सिंह के निजी जीवन की बात करे तो वह बचपन से पढ़ने के काफी शौकीन थे और उनका पालन पोषण उनके पैतृक गांव में ही हुआ था। जहां उनका बचपन सीमित संसाधनों के बीच गुजरा और उनकी प्राथमिक पढ़ाई गनियाबली गांव के एक विद्यालय में हुई थी तथा बाद में उन्होंने केएमबी इंटर कॉलेज से इंटर की पढ़ाई की थी। बता दे कि इसके बाद वह अलीनगर से एमए की पढ़ाई करने के बाद शिक्षक बन गए थे और रायपुर गांव के मुजफ्फता स्थित केसीए इंटर कॉलेज में शिक्षक की नौकरी की थी।
हालांकि वहां कुछ दिन बाद काम करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और संघ से जुड़ गए तथा धीरे धीरे वह राजनीति की तरफ अधिक सक्रिय होते चले गए। अगर हम कल्याण सिंह के राजनीति सफर की बात करे तो उन्होंने विधायक के लिए जनसंघ से 1962 में दीपक के चिन्ह पर चुनाव लडा था और वे इस चुनाव को हार गए थे। जिसके बाद वह 1967 में दोबारा मैदान में उतरे और जीत हासिल की। जी हां वह विधानसभा क्षेत्र अतरौली से दस बार विधायक बने और दो बार बुलंदशहर एटा के सांसद भी बने थे।
संघर्ष भरा था उनका जीवन :
अब यूं तो उनका राजनीतिक जीवन संघर्ष से भरा था, लेकिन इस दौरान भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हर संघर्ष से बखूबी लड़े। इसके इलावा वह पहली बार 1991 में भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री बने और करीब एक साल तक इस कुर्सी पर रहे। मगर बाबरी मस्जिद का ढांचा टूटने पर उन्होंने कुर्सी छोड़ दी थी। बहरहाल वह दो बार राजस्थान के राज्यपाल भी रह चुके है और अगर हम कल्याण सिंह के परिवार की बात करे तो उनके पिता का नाम तेजपाल लोधी तथा माता का नाम सीता देवी था।
बता दे कि कल्याण सिंह का जन्म 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीनगर में हुआ था। इसके इलावा वह 1997 में दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। दरअसल प्रदेश के मुख्यमंत्री के अनोखे चेहरे के रूप में उनका नाम इसलिए शामिल है क्योंकि उन्होंने राम मंदिर के चलते ही अपनी कुर्सी छोड़ दी थी। अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो कल्याण सिंह का जीवन जितना संघर्षपूर्ण था, उतनी ही बहादुरी से उन्होंने अपने जीवन का सफर तय किया था।
जमीन से जुड़े हुए थे इंसान थे कल्याण सिंह :
गौरतलब है कि कल्याण सिंह के समर्थक उन्हें बाबू जी के नाम से संबोधित करते थे और यह पदवी उन्हें उनके अलग व्यवहार और नेतृत्व की अलग शैली में दिलवाई थी। ये बात काफी कम लोग जानते है कि आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक रहे ओमप्रकाश ने उन्हें राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी थी और ऐसा कहा जाता है कि कल्याण सिंह दोस्तों के दोस्त तथा दुश्मनों के दुश्मन थे। वह बातों को दिल में दबा कर नहीं रखते थे और एक बार राज्यपाल रहते हुए उन्होंने सार्वजनिक रूप से नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की थी। जी हां 2019 के चुनाव से पहले सांसद सतीश कुमार गौतम के खिलाफ बोलने के कारण उन पर सवाल उठा था। हालांकि यह मामला राष्ट्रपति तक भी पहुंच गया था, लेकिन फिर भी वह कल्याण सिंह टस से मस न हुए।
बता दे कि कल्याण सिंह के आरएसएस से हमेशा अच्छे संबंध रहे थे और भाजपा के पुराने नेताओं से भी उनकी काफी बनती थी। इसके साथ ही कल्याण सिंह से मिलना काफी आसान होता था और वह घर आएं लोगों से दिल खोल कर बात करते थे। इसके इलावा कल्याण सिंह के नाती संदीप सिंह भी यूपी में मंत्री है। बहरहाल कल्याण सिंह अक्सर ये कहते थे कि भले ही कुछ भी हो जाएं, लेकिन उन्होंने कभी कारसेवकों पर गोली नहीं चलने दी। यहां तक कि बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद कल्याण सिंह को पूरी दुनिया में कट्टर हिंदुत्ववादी नेता के रूप में पहचाना जाने लगा था। फिलहाल कल्याण सिंह तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन राम मंदिर का कार्य खूब जोरों से जरूर चल रहा है। ऐसे में हम तो यही दुआ करते है कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।