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11 बैठकें और तकरीबन एक साल के बाद सरकार ने की नए कृषि कानूनों की वापसी, आइए नजर डालते हैं किसानों की संघर्ष की कहानी पर

बता दे कि पिछले साल जो कृषि कानून लागू किए गए थे अब उन्हें भारी विरोध के बाद वापिस लेने का फैसला लिया गया है। जी हां पश्चिमी यूपी, पंजाब और हरियाणा सहित कई राज्यों के किसान एक साल से कृषि कानूनों का विरोध करते हुए दिल्ली की अलग अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे थे, ऐसे में पीएम मोदी ने इन तीनों कानूनों को वापिस लेने का ऐलान कर दिया है। बहरहाल 11 बैठकें और तकरीबन एक साल के बाद सरकार ने नए कृषि कानून लाने का फैसला किया है।

11 बैठकें और तकरीबन एक साल के बाद सरकार ने वापिस लिए नए कृषि कानून :

दरअसल पिछले साल जून से लेकर अब तक ये तीनों कानून मोदी सरकार के गले का फंदा बने हुए थे तो ऐसे में मोदी सरकार ने गुरु नानक जयंती के मौके पर इन कृषि कानूनों को वापिस लेने का फैसला कर ही लिया। इसके साथ ही पीएम मोदी ने किसानों से यह गुजारिश की, कि अब वे अपने घर वापिस लौट जाएं, लेकिन किसानों ने कहा कि जब तक कानून खत्म करने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो जाती, तब तक वे इस आंदोलन को जारी रखेंगे। तो चलिए अब आपको किसानों के संघर्ष के बारे में विस्तार से बताते है।

गौरतलब है कि पिछले साल पांच जून को तीन कृषि बिलों को अध्यादेश के जरिए लाया गया था और विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया था। फिर चौदह सितंबर को केंद्र सरकार ने इन अध्यादेशों को संसद में पेश किया था। इसके बाद सतरह सितंबर को ये तीनों बिल लोकसभा ने पारित हुए थे और विरोधी दलों ने सरकार को किसान विरोधी कहा था। मगर फिर भी वे इस बिल को पारित होने से रोक नहीं सके। इसके बाद बीस सितंबर को ये बिल लोकसभा में पास होने के बाद राज्यसभा में पेश किए गए और फिर यहां भारी विरोध के बाद आखिर ये बिल पारित हो ही गए।

किसानों के संघर्ष की पूरी कहानी यहां पढ़े : 

बता दे कि इसके बाद ही पच्चीस सितंबर को पहली बार कृषि बिलों को लेकर किसान संगठनों ने बड़ा विरोध करना शुरू किया था और किसान संघर्ष कॉर्डिनेशन कमेटी ने राष्ट्रव्यापी विरोध का ऐलान किया था। इसके बाद सताइस सितंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीनों कृषि बिलों का समर्थन किया और इसे कानूनी रूप दे दिया गया। ऐसे में कानून के खिलाफ विरोध और ज्यादा बढ़ गया। यहां गौर करने वाली बात ये है कि इसके बाद ही पच्चीस नवंबर को किसान संगठनों ने दिल्ली चलो आंदोलन का आह्वान किया था और दिल्ली की तरफ जा रहे किसानों का पुलिस के साथ काफी आमना सामना हुआ तथा पुलिस ने किसानों को दिल्ली के बॉर्डर की तरफ बढ़ने से रोकने के लिए वॉटर कैनन तथा आंसू गैस भी छोड़ी।

वही अठाईस नवंबर को ग्रह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जब दिल्ली बॉर्डर से किसान हटेंगे तभी उनसे बातचीत की जायेगी और ऐसे में किसानों को बुराड़ी प्रदर्शन स्थल पर जाना होगा। मगर किसानों ने इन सब मांगों को मानने से इंकार कर दिया। जिसके बाद तीन दिसंबर को सरकार और किसानों के बीच बातचीत का सिलसिला जारी हुआ और पांच दिसंबर को दूसरी बार बातचीत की गई। जिसके बाद आठ दिसंबर को किसानों ने भारत बंद होने का ऐलान किया और नौ दिसंबर को किसानों ने कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव खारिज कर दिया।

साल भर चलता रहा किसानों का आंदोलन :

फिर ग्यारह दिसंबर को कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई और सात जनवरी को नए कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने के लिए हामी भर दी। फिर ग्यारह जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी का गठन करने के लिए कहा और बारह जनवरी को तीनों कृषि कानूनों को स्थगित कर दिया गया। इसके बाद छब्बीस जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों ने ट्रैक्टर रैली बुलाई, लेकिन इस दौरान दिल्ली के कई इलाकों में खूब हंगामा हुआ और इसका इल्जाम किसानों पर लगाया गया।

वही दो फरवरी को सिंगर रिहाना, क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने किसानों का समर्थन करते हुए ट्वीट किया। जी हां उनके ट्वीट में टूलकिट को लेकर उनके क्रिएटर्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। इसके बाद पांच मार्च को पंजाब विधानसभा ने तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया तथा सात अगस्त को संसद में किसान आंदोलन को लेकर विपक्षी दलों की बैठक बुलाई गई। जिसके बाद अठाईस अगस्त को हरियाणा पुलिस ने करनाल में लाठीचार्ज किया और इसके चलते कई किसान घायल भी हुए। ऐसे में कई किसान करनाल में प्रोटेस्ट करने के लिए रवाना भी हुए।

आखिरकार सरकार को माननी पड़ी किसानों की बात :

मोदी सरकार के कृषि बिल

बता दे कि ग्यारह सितंबर को हरियाणा सरकार ने लाठीचार्ज के मामले की जांच करने की बात कही तथा तीन अक्टूबर को यूपी के लखीमपुर खीरी में बीजेपी नेताओं और किसानों के बीच काफी हंगामा हुआ। ऐसे में अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा पर यह आरोप लगा कि उनकी गाड़ी ने किसानों को कुचल दिया। जिसमें चार किसानों सहित करीब आठ लोगों की मौत हुई। जिसके बाद विपक्ष ने यूपी और केंद्र सरकार पर खूब हमला किया। गौरतलब है कि चौदह अक्टूबर को केंद्रीय मंत्री अजय के बेटे आशीष मिश्रा को जेल भेज दिया गया था और सतारह नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के रिटायर जज के लखीमपुर खीरी मामले को मॉनिटर करने के लिए नियुक्त कर दिया। जिसके बाद पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा कि किसानों के खिलाफ दर्ज की गई सभी एफआईआर वापिस ले ली जाएंगी।

फिर अंत में उन्नीस नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेने का फैसला कर ही लिया और इन कानूनों को आने वाले संसद सत्र में वापिस लिया जाएगा। फिलहाल 11 बैठकें और करीब एक साल के बाद मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को वापिस लेने का फैसला तो कर लिया, लेकिन भविष्य में इसका परिणाम क्या होगा, ये तो आने वाला समय ही बताएगा।

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