स्वास्थ्य

ताड़ के पेड़ से बनने वाले इस तेल की कहानी जान लोगे तो खाने के पहले दो बार सोचोगे

अगर आपने ताड़ का पेड़ देखा है तो यकीनन आपको इस पेड़ के बारे में काफी कुछ पता होगा, लेकिन अगर आपने इस पेड़ को नहीं देखा और आप इसके बारे में नहीं जानते तो आज हम आपको इस पेड़ के बारे में बहुत कुछ बताना चाहते है। जैसे कि इस पेड़ को अंग्रेज़ी में पाम कहते है और ताड़ के पेड़ से बनने वाले ऑयल को पाम ऑयल कहते है। बता दे कि पैकेट बंद फूड जैसे कि चिप्स, कुरकुरे, बिस्किट और ब्रेड आदि सब चीजों में इसी तेल का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में हम आपको बताना चाहते है कि क्या ये ऑयल आपके स्वास्थ्य के लिए सही है या नहीं। तो चलिए अब आपको इसके बारे में विस्तार से बताते है।

ताड़ के पेड़ से बनने वाले तेल की कहानी है ये :

गौरतलब है कि खाने के तेल के कारोबारियों का एक समूह है और पाम ऑयल को लेकर सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया समूह का कहना है कि बीते साल सितंबर के महीने में देश का कुल खाने के तेल का आयात एक साल पहले की तुलना में करीब 66 प्रतिशत बढ़ कर 17 लाख टन रिकॉर्ड हो गया है। जब कि इससे पहले भारत ने अक्टूबर 2015 में 16.51 लाख लीटर का आयात किया था।

वही अगर एसईए द्वारा जारी किए आंकड़ों की माने तो भारत ने सबसे ज्यादा पाम तेल इंडोनेशिया से इंपोर्ट किया था और भारत ने इंडोनेशिया से करीब आठ लाख बीस हज़ार टन पाम तेल लिया था। जब कि दूसरे नंबर पर मलेशिया है, जिसने भारत को तीन लाख 54 हज़ार टन पाम तेल दिया था। बहरहाल इस बारे में कार्यकारी निदेशक डॉ बीवी मेहता का कहना है कि भारत ने पहली बार 1996 में पाम  तेल का आयात शुरू किया था, लेकिन तब से लेकर अब तक बीते साल सितंबर के महीने में जो इंपोर्ट हुआ है उसने रिकॉर्ड बना दिया है।

कैसे बनता है ताड़ के पेड़ से तेल :

इस बारे में एक शोधार्थी का कहना है कि भारत सरकार द्वारा पाम तेल पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाना, जिसे जुलाई महीने से लागू किया गया था और भारतीय बाज़ार में खाने के तेलों के आसमान को चूमते दाम के कारण खाने का तेल महंगा बिकता है। बता दे कि इस महंगाई के कारण 30 जून 2021 को खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा जारी एक अध्यादेश के मुताबिक रिफाइंड पाम ऑयल के इंपोर्ट को रिस्ट्रिक्टेड से फ्री कैटेगरी में डाल दिया गया था। जिसके कारण इसके इंपोर्ट पर कोई ड्यूटी नहीं लगाई जा रही है। जी हां सरकार का ये मानना है कि इससे भारतीय बाज़ार में ज्यादा तेल आयेगा  और इससे खाने के तेल के दामों में भी कमी आयेगी।

यहां गौर करने वाली बात ये है कि ताड़ का तेल जिस पेड़ से बनता है, वो मूल रूप से अफ्रीका में पाया जाता है और वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फेडरेशन के अनुसार करीब सौ साल पहले दक्षिण पूर्वी एशिया में ताड़ के पेड़ को सजावटी पेड़ की तरह लाया गया था। बता दे कि यह तेल ताड़ के पेड़ के फल से बनता है और इस तेल को निकालने के दो तरीके है। सबसे पहला तरीका तो कच्चे ताड़ के फल को निचोड़ कर तेल निकालना है और दूसरा तरीका ताड़ की गिरी से तेल निकालना है। जिस तरह नारियल के अंदर सफेद वाला भाग होता है वैसे ही गिरी होती है। जिसे कई इलाकों में गरी भी कहा जाता है।

स्वास्थ्य के लिए कितना अच्छा है ये तेल : 

गौरतलब है कि दुनिया भर में खाने की तेल की खपत का एक तिहाई हिस्सा ताड़ के तेल से पूरा होता है और इसकी वजह इस पेड़ की खेती में सहूलियत तथा इसकी किफायती कीमत है। वही अगर पाम तेल के गुणों की बात करे तो यह सस्ता होने और आसानी से मिलने के इलावा ये तेल जल्दी खराब नहीं होता। जिसके कारण इससे बनी चीजें लंबे समय तक सुरक्षित रहती है। जी हां यह ज्यादा तापमान पर भी जलता नहीं है और इसलिए इस तेल में तली गई चीजें कुरकुरी बनती है। इसके साथ ही इसका कोई रंग या स्वाद नहीं होता, इसलिए इसका सेवन किया जा सकता है।

हालांकि इसका सबसे ज्यादा सेवन अफ्रीकी देशों में किया जाता है। बहरहाल इस तेल को लेकर अमरीकी सरकार के कृषि विभाग की वेबसाइट का मानना है कि पाम तेल की पोषण संबंधी प्रोफाइल बाकी खाने के तेलों जैसी ही है, लेकिन यह तेल स्वास्थ्य के लिए सही है या नहीं, इसे लेकर हमेशा से चर्चा होती रही है। जी हां दुनिया भर में इस तेल को लेकर कई शोध किए जा चुके है। बता दे कि ताड़ के तेल के एक बड़े चम्मच यानि चौदह ग्राम ताड़ के तेल में करीब एक सौ बीस कैलोरी और चौदह ग्राम कुल फैट होता है। इसके साथ ही इसमें विटामिन ई और ए की भी थोड़ी सी मात्रा पाई जाती है।

इस तेल के मुकाबले दूसरे तेल है ज्यादा फायदेमंद :

इस बारे में डॉ रोहित का कहना है कि ताड़ के तेल में फैट ज्यादा होने के कारण इससे दिल से संबंधित बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में अगर मार्केट में दूसरे तेल मौजूद है जिनमें फैट कम है, तो इस तेल से बचा जा सकता है। जब कि हेल्थ वेबसाइट के अनुसार तेल को बार बार गर्म करने से इसकी एंटीऑक्सीडेंट क्षमता भी कम हो जाती है, जिसके कारण दिल की बीमारियों को बढ़ाने में इस तेल का काफी योगदान हो सकता है। इसलिए अगर हो सके तो सोच समझ कर ही इस तेल का इस्तेमाल करे।

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