इस एक छल के कारण लंका बना रावण का साम्राज्य, जानिए विस्तार से
रावण के पिता विश्रवा और माता कैकसी थे। विश्रवा ब्रह्मा के पुत्र और एक महान ऋषि थे। कैकसी दैत्य कुल की थीं और वह विश्रवा से इसलिए विवाह करना चाहती थीं क्योंकि उन्हें एक शक्तिशाली पुत्र चाहिए था जो तीनों लोकों पर शासन कर सके। कैकसी की इच्छा के अनुसार, उन्होंने चार बच्चों को जन्म दिया : रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और एक पुत्री शूर्पणखा। रावण द्वारा लंका पर अधिकार प्राप्त करने की कथा हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण और रोचक कथा है। इस कहानी में शिव और पार्वती से जुड़े एक छल का जिक्र है। आइए इसे विस्तार से जानते हैं।
रावण की तपस्या और वरदान :
रावण ने बचपन से ही शक्ति और ज्ञान के लिए घोर तपस्या की। उसने ब्रह्मा और शिव दोनों की तपस्या की और उनसे कई वरदान प्राप्त किए, ताकि वह शक्तिशाली बन सके। ब्रह्मा से उसने अजेयता का वरदान प्राप्त किया, जिससे कोई भी देवता, असुर या राक्षस उसे नहीं मार सके। शिवजी ने उसे वरदान स्वरूप अनेक अस्त्र-शस्त्र और शक्तियाँ प्रदान कीं।
लंका का निर्माण :
लंका का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने किया था और यह एक दिव्य नगर था। प्रारंभ में यह नगर कुबेर के अधिकार में था, जो रावण के सौतेले भाई थे। कुबेर धन के देवता हैं और वे शिव के भक्त थे।
छल की कथा :
एक कथा के अनुसार, रावण ने लंका को पाने के लिए छल का सहारा लिया। उसने शिव और पार्वती की तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया। एक दिन, जब शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत पर विराजमान थे, रावण ने अवसर का लाभ उठाया और शिवजी को लंका का स्वामी बनने के लिए प्रार्थना की। शिवजी उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दे बैठे। रावण ने यह मौका नहीं छोड़ा और शिवजी से लंका की मांग कर ली।
शिवजी ने यह वरदान दिया, लेकिन पार्वती जी ने इस पर संदेह जताया। उन्होंने शिवजी से कहा कि यह रावण का छल है और उसने हमें भ्रमित करके लंका मांगी है। परंतु, शिवजी ने एक बार वरदान दे दिया था, इसलिए उन्होंने रावण को लंका सौंप दी।
रावण का लंका पर अधिकार :
इस प्रकार, रावण लंका का राजा बन गया और उसने अपनी राजधानी को एक समृद्ध और शक्तिशाली साम्राज्य में बदल दिया। उसने अपने वरदानों और शक्तियों का उपयोग करके तीनों लोकों पर आतंक फैलाया और अनेक युद्ध जीते। लंका रावण के शासनकाल में अपने चरम पर पहुंची और यह एक अजेय और अद्वितीय नगर के रूप में प्रसिद्ध हो गई।
कुबेर और लंका का साम्राज्य :
कुबेर, भगवान विष्णु के परम भक्त और धन के देवता हैं, अपने पवित्रता और निष्ठा के कारण प्रसिद्ध थे। उनके पास लंका नामक एक अद्भुत स्वर्ण नगरी थी, जो अपने अपार धन और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थी।
रावण का कुबेर से बैर :
रावण, जो कि कुबेर का सौतेला भाई था और महादेव शिव का बहुत बड़ा भक्त था। अपनी शक्तियों और पराक्रम से वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करना चाहता था। उसकी इच्छा थी कि वह पूरे ब्रह्मांड पर शासन करे
लंका पर रावण का कब्जा :
रावण ने अपनी शक्ति और शक्ति का प्रयोग करते हुए लंका पर कब्जा करने का निश्चय किया। उसने कुबेर के प्रति छल का सहारा लिया और उसे युद्ध में पराजित किया। कुछ पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि रावण ने अपनी शक्ति और तपस्या से प्राप्त वरदानों का दुरुपयोग किया और कुबेर को लंका छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
छल और अधर्म
रावण ने लंका का साम्राज्य छल और बलपूर्वक प्राप्त किया। उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए कुबेर को पराजित किया और लंका पर अपना अधिकार स्थापित किया। यह घटना उसकी अधर्म और छल की प्रवृत्ति को दर्शाती है, जो बाद में उसके पतन का कारण बनी। रावण ने लंका पर अपना राज्य स्थापित किया और अपनी शक्ति और भक्ति का दुरुपयोग करते हुए अनेक अधार्मिक कार्य किए। अंततः, उसके अधर्म और अभिमान ने उसे विनाश की ओर अग्रसर किया। भगवान राम ने उसका वध किया और लंका को कुबेर के वंशजों को पुनः सौंप दिया।
कथा का निष्कर्ष :
रावण द्वारा लंका पर कब्जा करने की यह कथा हमें यह सिखाती है कि छल, अधर्म और अत्याचार की नीति से प्राप्त की गई सफलता स्थायी नहीं होती। सत्य, धर्म और न्याय की विजय अंततः होती है, जैसा कि रावण के विनाश और भगवान राम की विजय से सिद्ध होता है।