इतने शक्तिशाली थे विदुर, फिर भी नहीं लिया महाभारत के युद्ध में हिस्सा, जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी
ये तो सब जानते ही है कि महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत हुई थी और कौरवों को हार का मुँह देखना पड़ा था। मगर महाभारत के इस युद्ध से पहले की कहानी के बारे में काफी कम लोग ही जानते होंगे। जी हां महाभारत की कहानी में विदुर भी थे, जो काफी शक्तिशाली थे, लेकिन इतने शक्तिशाली होने के बावजूद भी विदुर ने महाभारत के युद्ध में नहीं लिया भाग और इसके पीछे की वजह क्या है, ये आज हम आपको बताएंगे। दरअसल विदुर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वे धर्मराज के अवतार थे और अगर वो चाहते तो इस युद्ध में अपने धनुष से पूरी सेना को एक ही बार में खत्म कर सकते थे। तो चलिए अब आपको विदुर से जुडी इस कहानी के बारे में विस्तार से बताते है।
विदुर ने क्यों नहीं लिया महाभारत के युद्ध में हिस्सा
इतने शक्तिशाली होने के बावजूद भी महाभारत के युद्ध का हिस्सा नहीं बने विदुर :
बता दे कि विदुर असल में धृतराष्ट्र और पाण्डु के भाई थे तथा कौरवों और पांडवों के काका थे। वही अगर हम विदुर के जन्म की बात करे तो हस्तिनापुर के नरेश शांतनु और उनकी पत्नी सत्यवती के दो पुत्र हुए थे, जिनके नाम चित्रांगन और विचित्र वीर्य थे। मगर अफ़सोस कि दोनों पुत्रों के बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया और फिर दोनों पुत्रों का पालन पोषण भीष्म द्वारा किया गया। यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि भीष्म, शांतनु की पहली पत्नी गंगा से उत्पन्न हुए थे। इसके बाद शांतनु ने सत्यावती की सुंदरता से आकर्षित हो कर उससे विवाह किया था, लेकिन विवाह से पहले सत्यावती के पिता ने यह शर्त रखी थी कि शांतनु के बाद सत्यावती से पैदा हुआ पुत्र ही राजा का पद ग्रहण करेगा, न कि उनकी पहली पत्नी गंगा का पुत्र राजा का पद ग्रहण करेगा।
बहरहाल शांतनु ने इस शर्त को मान कर सत्यावती से विवाह कर लिया और भीष्म ने अपने पिता के वचन को निभाते हुए उम्र भर शादी ही नहीं की और अपने पिता की दूसरी पत्नी के बच्चों का बहुत प्यार से पालन पोषण किया। फिर जब चित्रांगन बड़े हुए तब भीष्म ने राजा का पद उन्हें सौंप दिया, लेकिन अफ़सोस कि कुछ समय बाद गन्धर्वो से युद्ध के दौरान चित्रांगन की मृत्यु हो गई। हालांकि इसके बाद विचित्र वीर्य भी युवा अवस्था में पहुँच चुके थे, तो ऐसे में भीष्म ने उनका विवाह करने की सोची। बता दे कि उसी समय काशीराज की तीन पुत्रियां अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वंयवर होने वाला था, तो ऐसे में भीष्म ने वहां जा कर सभी राजाओं को हरा दिया और काशीराज की तीनों पुत्रियों को हस्तिनापुर ले आएं।
सत्यावती के पुत्र थे ऋषि वेदव्यास :
हालांकि जब बड़ी कन्या अम्बा ने भीष्म से कहा कि वह राजा शाल से प्रेम करती है, तब भीष्म ने उसे राजा के पास भेज दिया, लेकिन बाकी दो कन्याओं का विवाह विचित्र वीर्य के साथ करवा दिया गया। मगर यहाँ दुःख की बात ये है कि विचित्र वीर्य को क्षय रोग हो गया और इसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। जी हां तब तक विचित्र वीर्य की कोई संतान पैदा नहीं हुई थी, तो ऐसे में शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यावती ने भीष्म से कहा कि वे विचित्र की पत्नियों से पुत्र उत्पन्न करे, लेकिन भीष्म ने अपने पिता का वचन तोड़ने से मना कर दिया। जिसके बाद सत्यावती ने अपने पुत्र वेदव्यास को याद किया, जो असल में सत्यावती और ऋषि पराशर के ही पुत्र थे।
गौरतलब है कि वेदव्यास अपनी माँ की आज्ञा का पालन करते हुए पुत्र उत्पति के लिए तैयार हो गए और उन्होंने अम्बिका तथा अम्बालिका से एक साल तक नियम व्रत का पालन करने के लिए कहा। फिर एक साल के बाद वेदव्यास जी ने माता सत्यावती से कहा कि अम्बिका तथा अम्बालिका को एक एक करके निर्वस्त्र हो कर उनके सामने से गुजरना होगा, लेकिन दोनों को ऐसा करने में काफी असहजता महसूस हुई। जिसके बाद माँ सत्यावती ने उन्हें समझाया और फिर वे दोनों ऐसा करने के लिए मान गई।
इस तरह हुआ विदुर का जन्म :
बता दे कि जब वेदव्यास, अम्बिका के पास गए तब अम्बिका ने अपने तेज नेत्र बंद कर लिए और फिर वेदव्यास जी ने कक्ष के बाहर आ कर माँ सत्यावती से कहा कि अम्बिका को काफी तेजस्वी पुत्र प्राप्त होगा, लेकिन वह नेत्रहीन होगा, क्यूकि अम्बिका ने अपने नेत्र बंद कर लिए थे। इसके बाद वेदव्यास, छोटी रानी अम्बालिका के पास गए, तो ऐसे में वेदव्यास को देख कर अम्बालिका काफी भयभीत हो गई। जिसके बाद वेदव्यास जी ने माँ सत्यावती से कहा कि अम्बालिका का पुत्र पाण्डु रोग से ग्रसित होगा। बहरहाल ये सब सुन कर माँ सत्यावती को काफी दुःख हुआ और फिर इसके बाद माँ सत्यावती ने अम्बालिका को दोबारा वेदव्यास जी के सामने जाने के लिए कहा।
इस बार रानी ने खुद की बजाय अपनी दासी को ऋषि वेदव्यास के सामने भेज दिया और वह दासी वेदव्यास के सामने जा कर बिल्कुल भी नहीं घबराई। जिसके बाद वेदव्यास जी ने माँ सत्यावती से कहा कि इस दासी से उत्पन्न हुआ पुत्र नीतिवान और वेदों का ज्ञानी होगा। गौरतलब है कि वेदव्यास जी की कही बात के अनुसार अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और उस दासी से विदुर का जन्म हुआ। यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि ऋषि माण्डव्य के श्राप के कारण विदुर ने दासी पुत्र के रूप में जन्म लिया और आगे चल वह धृतराष्ट्र के मंत्री बने। जी हां विदुर धर्म का पालन करते थे और वे चाहते थे कि धृतराष्ट्र भी धर्म के मार्ग पर ही चले। मगर अफ़सोस कि ऐसा नहीं हुआ और फिर धृतराष्ट्र जब भी पांडुओं के अहित की बात करते थे, तब विदुर ही उन्हें समझाते थे।
इस वजह से विदुर ने तोड़ दिया था अपना शक्तिशाली धनुष :
बहरहाल पांडुओं का पक्ष लेने के कारण दुर्योधन विदुर से ईर्ष्या करता था और लक्षागृह के षड्यंत्र के समय भी विदुर ने ही युधिषिठर को सावधान किया था तथा उन्हें इससे बचने की युक्ति भी बताई थी। बता दे कि विदुर जी के पास एक बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी धनुष था, जो उन्हें खुद भगवान् कृष्ण जी से प्राप्त हुआ था। ऐसे में अगर वे चाहते तो इस धनुष से एक ही बार में युद्ध को खत्म कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। दरअसल बात ये है कि एक बार विदुर ने दुर्योधन को युद्ध न करने की सलाह दी थी, जिसके बाद दुर्योधन ने विदुर को अपशब्द कहने शुरू कर दिए। जिसके बाद विदुर जी ने गुस्से में अपना धनुष तोड़ दिया और ये प्रण लिया कि वे युद्ध में नहीं लड़ेंगे।
जी हां विदुर जानते थे कि अगर वे युद्ध में लड़े तो उन्हें कौरवों की तरफ से लड़ना होगा, यानि उन्हें अधर्म के पक्ष में रहना होगा और इसी वजह से उन्होंने युद्ध न करने का फैसला किया। इसके साथ ही उन्होंने धृतराष्ट्र को भी समझाया कि दुर्योधन उनके कुल का नाश कर देगा, इसलिए इस युद्ध का परित्याग करने में ही समझदारी है, लेकिन तब विदुर की बात किसी ने नहीं मानी और इसका परिणाम ये हुआ कि कौरव महाभारत के युद्ध में बुरी तरह से हार गए और लड़ते लड़ते मर गए। तो इस वजह से इतने शक्तिशाली होने के बावजूद भी महाभारत के युद्ध में विदुर ने नहीं लिया भाग और युद्ध लड़ने से ही इंकार कर दिया।