क्या पति भी रख सकता है करवाचौथ का व्रत, जानिए करवाचौथ व्रत से जुड़े कुछ दिलचस्प नियम
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवाचौथ का त्योहार मनाया जाता है। सुहागिन महिलाओं के लिए ये व्रत बेहद खास होता है। वे हर साल इसका बेसब्री से इंतजार करती हैं। इस दौरान महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए निराहार व निर्जल व्रत रखती हैं। इसके बाद रात में जब चांद निकलता है तो उसकी पूजा करने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती है। यदि कोई व्रती महिला गर्भवती है या फिर किसी बीमारी के कारण व्रत नहीं कर पाती तब पति उस संकल्प को निभाने के लिए व्रत रख पूजा में पत्नी का सहयोग कर सकता है। क्योंकी पति पत्नी एक-दूसरे के पूरक होते हैं।
पति पत्नी के साथ व्रत रहने से बढ़ता है प्रेम :
आज-कल कुछ लोग बहोत से लोग अपनी पत्नी के साथ करवाचौथ का व्रत रखते हैं ऐसे में दोनों के बीच अच्छा समांजस्य स्थापित होता है और रिश्ते में मधुरता आति हैं भले ही शास्त्रों में इस व्रत को लेकर पतियों के लिए उल्लेख नहीं है लेकिन अगर प्रेमवश कोई पति अपनी पत्नी की इस कठोर व्रत साधना में उसका सहयोग करता है तो निश्चित ही उन दोनों के व्रत का पुण्य उनकी जिंदगी में पड़ता है और रिश्तों की मधुरता के साथ-साथ घर में समृद्धि आयेगी।
करवाचौथ व्रत के नियम :
सूर्योदय होने के बाद ही करवाचौथ व्रत शुरू होता है। ऐसे में आप सूर्य निकलने के पहले कुछ भी खा सकती हैं। यही वजह है कि सूर्योदय से पहले सभी घरों में सरगी खिलाई जाती है। इसे खाने से महिला के अंदर दिनभर के लिए एनर्जी आ जाती है। फिर वह व्रत आसानी से कर पाती है।
अगर महिला का पहला करवाचौथ है और व्रत में उसे फलाहार या जल ग्रहण करवा दिया है तब इस स्थिति में वह अन्य करवाचौथ व्रत पर निराहार या निर्जल या फलाहार लेकर रह सकती है। नियम के अनुसार व्रत में महिला चांद के निकलने तक जल ग्रहण नहीं कर सकती है, लेकिन यदि महिला बीमार है जाए तो वह जल पी सकती है।
इस व्रत को सामान्यतः सुहागिन महिलाएं ही करती हैं। हालांकि जिन लड़कियों का विवाह तय हो गया है वह भी इन्हें कर सकती है। वहीं कुंवारी लड़कियां ये व्रत करें तो चांद की बजाए तारों को दखकर ये व्रत खोलें। शास्त्रों के अनुसार यदि किसी करवाचौथ पर महिला बीमार हो जाती है तो उसका व्रत पति रख सकता है। वैसे आज के मॉडर्न जमाने में कई पति भी अपनी पत्नी के लिए ये व्रत रखते हैं।
व्रत के दिन करवाचौथ की कथा अवश्य सुनना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख, शान्ति और समृद्धि बनी रहती है। वहीं महिला को संतान सुख भी प्राप्त होता है। व्रत की कथा सुनते समय आपके पास साबुत अनाज और मिष्ठान का होना जरूरी होता है। वहीं कथा के समाप्त होने पर बहूएं अपनी सास को बायना देती हैं। इस दिन आप लाल, पीले जैसे चमकदार रंग के कपड़े पहनें। साथ ही सफेद चीजों का दान करने से बचें।
पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए। पूजा समाप्त होने पर जब चाँद निकाल आए तो चंद्र पूजन कर अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद पति की लंबी उम्र की कामना करें और उन्हें तिलक लगाएं। इसके बाद पति और घर के अन्य बड़े लोगों का आशीर्वाद लें। अंत में पति के हाथों से जल ग्रहण कर उपवास खोल दें।