यूपी के वह मुख्यमंत्री जो चाय नाश्ते का पैसा भी देते थे अपनी जेब से
Govind Ballabh Pant : वैसे तो नेताओं की राजनीती के बारे में हर कोई बखूबी जानता है, क्यूकि नेताओं के पास जब सत्ता आती है, तो उनके तेवर ही बदल जाते है। मगर आज हम एक ऐसे मुख्यमंत्री के बारे में बात करना चाहते है, जो चाय नाश्ते के पैसे भी खुद अपनी जेब से देते थे। जी हां यूपी के वह मुख्यमंत्री जो वास्तव में एक अच्छे और सच्चे नेता थे। बता दे कि हम यहाँ किसी और की नहीं बल्कि गोविन्द बल्लभ पंत की बात कर रहे है जिनका जन्म तो पहाड़ों में हुआ था, लेकिन उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बन कर उन्होंने सब को हैरान कर दिया।
Govind Ballabh Pant
पढ़ाई में काफी होशियार थे पंत जी :
गौरतलब है कि गोविन्द जी का जन्म अल्मोड़ा में हुआ था, लेकिन वह मूल रूप से महाराष्ट्रियन थे और उनकी माँ का नाम गोविंदी बाई था। इसके इलावा उनके पिता सरकारी नौकरी करते थे, जिसके कारण उनके पिता का ट्रांसफर होता रहता था और यही वजह है कि वह अपने नाना के पास ही पले बढ़े थे। हालांकि पंत जी को खेल कूद में इतनी दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन वह पढ़ाई में काफी होशियार थे।
आपको बता दें की 1937 में पंत जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। फिर दोबारा से वे 1946 से दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 1951 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में वो बरेली म्युनिसिपैलिटी से जीते थे। 1955 में केंद्र सरकार में होम मिनिस्टर बने। 1955 से 1961 तक होम मिनिस्टर रहे।
झूठ बोलने से नफरत करते थे गोविन्द बल्लभ पंत :
बता दे कि पढ़ाई करके जब वह वकील बने तो उन्होंने ठान लिया कि वह केवल सच्चे केस ही लड़ेंगे क्यूकि उन्हें झूठ से बेहद नफरत थी। फिर बाद में गोविन्द जी ने कुली बेगार के खिलाफ केस लड़ा, जिसके कानून के मुताबिक लोकल लोगों को अंग्रेजों का सामान मुफ्त में ढोना पड़ता था। इसके इलावा काकोरी काण्ड में भी बिस्मिल और खान का केस का लड़ा था। यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि वकालत शुरू करने से पहले गोविन्द जी के बड़े बेटे और पत्नी गंगादेवी की मृत्यु हो गई थी और इसी वजह से वह काफी उदास रहने लगे थे। जिसके बाद वह अपना पूरा समय वकालत और राजनीती को देने लगे थे और काफी दबाव डालने के बाद ही उन्होंने दूसरी शादी भी की थी।
तीस साल की उम्र में करनी पड़ी थी तीसरी शादी :
हालांकि उनकी दूसरी पत्नी भी शादी के दो साल बाद स्वर्ग सिधार गई और दूसरी पत्नी से जो बेटा था वह किसी बीमारी की वजह से मृत्य को प्राप्त हो गया। इसके बाद तीस साल की उम्र में उनकी तीसरी शादी कला देवी से हुई थी और फिर साल 1921 में पंत जी चुनाव में आएं। यहाँ तक कि वह 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार भी हुए और तीन साल तक अहमदनगर फोर्ट में नेहरू जी के साथ जेल में रहे थे। मगर फिर नेहरू जी ने उनके स्वास्थ्य की बात कह कर उन्हें जेल से बाहर निकलवा दिया।
हिंदी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने में था बड़ा योगदान :
बता दे कि अगर गोविन्द जी को किसी चीज के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है तो हिंदी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए ही जाना जाता है और 1957 में उन्हें भारत रत्न भी मिल चुका है। गौरतलब है कि एक बार पंत जी ने सरकारी बैठक की थी और वहां चाय नाश्ते का प्रबंध भी किया गया था। फिर जब सब चीजों का बिल आया तो उसमें छह रूपये और बारह आने लिखे हुए थे। मगर पंत जी ने वह बिल देने से मना कर दिया क्यूकि उन्होंने कहा कि सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे पर केवल चाय मंगवाने का नियम है और नाश्ते का बिल वही व्यक्ति चुकाएगा जिसने नाश्ता मंगवाया हो।
ईमानदार नेता की छवि थे गोविन्द बल्लभ पंत :
ऐसे में पंत जी ने वह बिल खुद अपनी तरफ से चुकाया था। इसके साथ ही पंत जी ने ये भी कहा था कि सरकारी खजाने पर केवल जनता का हक है मंत्रियों का नहीं और उनकी ये बात सुन कर वहां मौजूद सभी लोग चुप हो गए थे। आपको जान कर हैरानी होगी कि पंत जी को महज चौदह साल की उम्र में ही हार्ट की बीमारी हो गई थी और ऐसे में पहला हार्ट अटैक उन्हें चौदह साल की उम्र में आया था। बहरहाल पंत जी के बारे में ये सब जानने के बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि यूपी के वह मुख्यमंत्री जिन्होंने सरकारी खजाने को मंत्रियों का न कह कर जनता का कहा, वे सच में काफी ईमानदार मुख्यमंत्री थे।